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*अष्टावक्र गीता*-9 अविनाशी है आत्मा,यही सत्य तुम जान। बुद्धिमान नर जान यह,धरे न धन का ध्यान।। हृदय वासना में रमे,जब मन में अज्ञान। कहे सीप को रजत यह,भ्रम बस मन नादान।। ...